सोमवार, 5 जुलाई 2010

हरिश्चंद्र गढ़ ट्रेक

बरसात शुरू हुए बहुत दिन बीत चुके थे और अभी तक हम लोग किन्ही कारणोंवश प्रकृति से दूर ही रह गये थे ! पिछले २-३ सप्ताहान्त कुछ ऐसे काम निकल आते थे कि ट्रेकिंग के प्लान धरे के धरे रह जाते ! आखिर इस सप्ताहान्त पर हरिश्चन्द्रगढ़ के ट्रेक का विचार बना ! जाने वाले लोगों में मैं और सौरभ ही थे !  सौरभ का भाई सुयश भी इन दिनों यहीं था तो आखिर में हम ३ लोग हो गये !

हरिश्चन्द्रगढ़ के पिछले ट्रेक में हम समय की कमी की वजह से प्रसिद्ध कोंकण काड़ा नही जा पाए थे तो इस बार कोंकण काड़ा जाना बहुत जरूरी था ! प्लान कुछ ऐसा बना की रात में मुंबई से निकलेंगे और सुबह सुबह खिरेश्वर गाँव से ट्रेक प्रारंभ कर देंगे! रात में गुफा में ही रुका जायेगा और अगले दिन सुबह सुबह वापसी की जाएगी ! परन्तु मौसम के रंगों के हिसाब से ये प्लान भी बदलता ही रहा वास्तव में वापसी की यात्रा एक बार रोमांचक होनी शुरू हुई और होती ही रह गयी |

हरिश्चन्द्रगढ़: 

हरिश्चन्द्रगढ़ की गणना बहुत प्राचीन किलों में होती है |बहुत से पुराणों (मत्स्यपुराण , अग्निपुराण , और स्कन्दपुराण आदि) में इसका उल्लेख मिलता है | इस किले को छठी शताब्दी में कलचुरी वंश के शासनकाल में बना हुआ माना जाता है | बहुत सी गुफाएं ११वीं शताब्दी में बनी हुई मानी गई हैं | गुफाओं में भगवान विष्णु की मूर्तियाँ हैं | यहाँ के विविध निर्माण इसके बाद यहाँ विभिन्न संस्कृतियों के आगमन को दर्शाते हैं | खीरेश्वर गाँव में नागेश्वर मंदिर , हरिश्चंद्रेश्वर मंदिर और केदारेश्वर गुफा में बनी अनुकृतियाँ इस किले को मध्यकालीन समय का बताती हैं | इसके बाद यह किला मुगलों के नियंत्रण में था जिसे मराठा वंश ने सन १७४७ में अपने नियंत्रण में ले लिया |
इस एतिहासिक महत्व के साथ ही यहाँ और भी जगहें बहुत प्रसिद्ध हैं : कोंकण काड़ा , तारामती चोटी, केदारेश्वर गुफा ,हरिश्चंद्रेश्वर मंदिर आदि |

मुंबई से खिरेश्वर :

हरिश्चन्द्रगढ़ पहुचने के लिए ३-४ रास्ते हैं | इनमे से तोलार खिंड (दर्रा) से होते हुए रास्ता थोडा सा रोमांचक परन्तु लम्बा है ! अन्य रास्तों में से पाचनै गाँव से जाने वाला रास्ता छोटा और आसान है ! बाकी २ और रास्ते हैं जो बरसात के समय थोड़े मुश्किल हो जाते हैं |
शाम को ५:३० पर ऑफिस से निकलने के बाद ट्रेन पकड़ कर करीब ९ बजे हम लोग कल्याण पहुच गये | कल्याण से अहमदनगर जाने वाली कोई भी बस जो माल्सेज घाट से होते हुए जाती है, पकड़ी जा सकती है ! उतरने की जगह माल्सेज घाट के थोडा सा आगे खूबी गाँव के पास है ! १०:३० की अहमदनगर जाने वाली आखिरी बस पकड़ कर हम करीब १ बजे खूबी फाटा के करीब पहुच गये | खूबी फाटा से करीब १ किलोमीटर पहले एक ढाबे पे बस रुकी और हम यहीं पे उतर गये ! हल्की हल्की बारिश हो रही थी और घना अँधेरा था | ढाबे पे चाय पीने के बाद हम लोगों ने सोचा की अँधेरे में ही खीरेश्वर गाँव तक चले जाते हैं और वहां कुछ देर रुकने के बाद फिर उजाला होने पर ट्रेक प्रारंभ करेंगे | महामार्ग पर ही करीब १ किलोमीटर चलने पर हम लोग खूबी फाटा पर पहुच गये ! यहाँ से एक कच्ची सड़क से होते हुए करीब ५-६ किलोमीटर दूर खिरेश्वर गाँव है | सड़क एक बहुत बड़े बाँध के किनारे किनारे ही बनी हुई है ! इस समय बारिश बहुत हल्की थी परन्तु कोहरा इतना घना था की कुछ भी नही दिख रहा था | धीरे धीरे चलते हुए आगे बढ़ने लगे | कुछ देर बाद याद आया की इतनी रात में गाँव में कहाँ रुकेंगे | गाँव में कोई स्कूल तो था पर कहाँ पर यह हमको पता नही था और इस समय तो सब सोये होंगे | अचानक मुझे याद आया की गाँव के कुछ पहले एक बहुत पुराना शिव मंदिर है | विकीमैपिया पर मैंने इसकी स्थिति भी थोड़ी देखी हुई थी |
थोडा और आगे चलने पर एक तरफ लाईट जलती हुई दिखी | कोहरे की वजह से और तो कुछ समझ नही आया | यह सोच कर की ये मंदिर हो सकता है हम लोग उस दिशा में बढ़ गये! थोड़ी दूर चलने पर मंदिर आ गया |
नागेश्वर मंदिर एक यादव काल में बना हुआ एक प्राचीन शिव मंदिर है | दीवारों पर अनेक कलाकृतियाँ हैं जिनमे प्रमुख है - शेषशायी विष्णु की १.५ मीटर लम्बी प्रतिमा जो मुख्य द्वार के ठीक उपर है |
सुबह ३ बजे टोर्च की रौशनी के सहारे हम लोग नागेश्वर मंदिर में पहुच गये | यहाँ करीब एक घंटा रुके और थोड़ी सी नींद पूरी कर ली | इसके बाद यहाँ से निकल कर गाँव से होते हुए आगे बढे | इतनी सुबह गाँव में बस कुत्तों के भोंकने की आवाजें आ रही थी | हमें याद था की पिछली बार गाँव से ठीक उपर एक आखिरी घर है जिसमे चाय की दुकान भी है | हमने सोचा था की वहां जा कर चाय मिल जाएगी और चाय पी कर हम आगे बढ़ेंगे | हमारी आवाजों से घर के लोग उठे परन्तु वहां दूध नही था और अब तो चाय भी नही मिलनी थी | हल्की बारिश थी और ठंडा भी लग रहा था|
कुछ देर घर के बाहर बैठे रहे और करीब ५ बजे हमने आखिर गाँव छोड़ कर जंगल में प्रवेश कर लिया |

खिरेश्वर से तोलार खिंड (दर्रा ) और चट्टान का रास्ता :

गाँव से आगे का रास्ता जंगल से होते हुए था और अभी थोडा अँधेरा ही था | रास्ता मालूम ही था इसलिए धीरे धीरे बढ़ते रहे | हमें लग रहा था की १-२ घंटे में जल्दी से चट्टान के रास्ते पर पहुच जाएँ क्योंकि बारिश के मौसम में चट्टानों की फिसलन के करें इसपर चढ़ना थोडा रोमांचक हो जाता है | 
बीच बीच में हल्की बारिश भी हो रही थी और घने कोहरे की वजह से हम लोग भीग ही चुके थे | करीब ७:४५ पर हम लोग तोलार खिंड में थे | यहाँ पर कुछ देर रुके और फिर चट्टान की ओर बढ़ चले |





इस रास्ते के कुछ चित्र नीचे लगा रहा हूँ :
 रास्ता बहुत मुश्किल नही था क्युकी एक बार इस पर जा चुके थे | बस अभी थोड़ी फिसलन थी परन्तु जरा सी भी गलती मुश्किल में डाल सकती थी क्योंकि नीचे सीधी चट्टान थी |

करीब आधे घंटे में हम लोग उपर पहुच गये और फिर थोडा आराम किया |

इसके बाद का रास्ता ज्यदा मुश्किल नही है और ७ छोटी छोटी पहाड़ियों पर चढ़ना उतरना है | घने कोहरे की वजह से कुछ दिख नही रहा था और कैमरे के लेंस में भी पानी पड़ गया था | इसलिए यहाँ पर फोटोग्राफी बंद कर दी और सीधे मंदिर की और बढ़ चले |

हरिश्चन्द्रगढ़ में :

करीब ९:४५ पर हम लोग हरिश्चन्द्रगढ़ पहुच गये | सप्ताहान्त होने की वजह से बहुत से लोग आये हुए थे | मंदिर में थोड़ी भीड़ देख कर हम मंदिर के ठीक नीचे बनी केदारेश्वर गुफा की और चल पड़े |
केदारेश्वर गुफा एक बड़ी सी गुफा है और इसमें पूरे साल पानी भरा रहता है | इसके मध्य में एक विशाल शिवलिंग बना हुआ है | ये सब एक ही चट्टान में उकेरे हुए हैं | शिवलिंग के उपर कुछ छत्र /मंदिर सा बना हुआ है और चारों तरफ चार स्तम्भ | इनमें से २ स्तम्भ टूट चुके हैं | यहाँ पहुच कर सीधे पानी में घुस गये और डुबकी लगा कर शिवलिंग तक पहुचे | यहाँ पर एक डुबकी सारी थकान मिटा देने वाली होती है |
इसके बाद हम वापस उपर आये और मुख्य हरिश्चंद्रेश्वर मंदिर के दर्शन किये | अब समय था कुछ खाने का | बरसात में सप्ताहान्त पर गाँव के कुछ लोग गुफाओं में ही आ जाते हैं और ट्रेकेर्स को भोजन उपलब्ध करा देते हैं | मंदिर के उपर की तरफ बहुत सी पुरानी गुफाएं हैं | हमारा विचार था की रात में यहीं किसी गुफा में सो जायेंगे और अगले दिन सुबह निकलेंगे |
उपर गणेश गुफा में पहुचे और यहाँ चाय पी और खाने का आर्डर दे दिया | इसके बाद समय था कोंकण काड़ा जाने का | यहाँ भी हमारी उम्मीद के मुताबिक कुछ नही दिख पाया सिवाय कोहरे के ! थोड़ी देर यहाँ बैठे रहे और फिर वापस गुफा में आ गये |
गुफा में अब तक गरमा गरम भोजन तैयार हो चुका था | आलू (बटाटा ) की सब्जी , भाकरी (चावल के आटे की रोटी ), पेटली (कढ़ी जैसा कुछ ) और गरमा गरम भात का आनंद लिया |
अब पेट भर खाने के बाद आगे का प्लान बनाना था | गुफा में रुकने से भी कुछ होना नही था क्युकी कोहरा छंटने की कोई उम्मीद नही थी | हमारा प्लान था की अगले दिन सुबह पाचनै गाँव से ६ बजे की बस पकड़ ली जाएगी जिसके लिए सुबह ४ बजे निकलना होता | हमने सोचा की क्यूँ ना अभी नीचे गाँव में चले जाएँ और वहीँ मंदिर या स्कूल में सो जाये | वैसे गाँव से एक बस सुबह ६ बजे और दूसरी ११ बजे है और इनके बीच में एक जीप भी चलती है | अगर किस्मत अच्छी हुई तो कोई ट्रक या टेम्पो मिल गया तो उससे निकल लेंगे |
करीब १ बजे हम हरिश्चन्द्रगढ़ के पाचनै की तरफ चल पड़े और बीच में झरनों का आनंद लेते हुए ३ बजे गाँव में पहुच गये | गाँव में एक मात्र चाय की दुकान थी जो उस दिन बंद थी |
अभी ३ ही बजा था और रात तक समय काटना था  | हमें यहाँ से राजुर जाना था और हमने विचार बनाया कि अगर राजुर १५ किलोमीटर हुआ तो हम पैदल ही निकल लेंगे और ३ घंटे में पहुच जायेंगे | यहाँ गाँव में पूछने पर पता चला कि राजुर २७ किलोमीटर है | इतना चलना तो मुमकिन नही था | साथ ही एक सज्जन ने बताया कि यहाँ से ९ किलोमीटर दूर एक गाँव है और वहां तक कभी कभी टेम्पो आ जाते हैं | हमने सोचा कि चलो ९ किलोमीटर चलने में २ घंटे कट ही जायेंगे और अगर वहां कुछ नही मिला तो मंदिर तो होगा ही | रात काट ली जाएगी | और हम चल पड़े |
परन्तु हमारी किस्मत थोड़ी अच्छी थी कि गाँव के दूसरे किनारे पर ही हमको एक जीप खड़ी मिल गयी | यहाँ जीप के मालिक से बात की तो वो ५०० रूपये में हमें राजुर छोड़ने के लिए राजी हो गया | लेकिन यहाँ कुछ देर रुकना पड़ा क्योंकि उसे कुछ काम निपटाने थे | यहाँ से निकल कर आराम से ५:१५ पर राजुर पहुच गये | राजुर से कसारा (जहाँ से मुंबई के लिए लोकल ट्रेन मिलती है ) के लिए आखिर बस ५:४० पर थी | बस स्टैंड पर पहुचने पर पता चला की वो बस तो आज ५ बजे ही चली गयी | सरकारी तंत्र का इससे ज्यादा अच्छा अनुभव पहले कभी नही हुआ था | ५:४० की बस ५ बजे ही कैसे जा सकती है | २-३ और लोगों से पूछने पर यकीन हुआ की बस जल्दी चली गई है |
अब यहाँ से दूसरा विकल्प था की घोटी (इगतपुरी के पास )के लिए जीप मिल जाएगी और फिर वहां से कसारा निकल लेंगे | अब फिर जीप में सवारी भरने का इंतज़ार करना पड़ा और फिर सुन्दर दृश्यों के बीच पहाडी रोड में इठलाती जीप चल पड़ी घोटी की तरफ | राजुर से घोटी ४६ किलोमीटर है और करीब ७ बजे हम लोग घोटी पहुच गये | यहाँ चाय पी और चाय वाले ने बताया की यहाँ से भी कसारा के लिए आखिरी बस ५ मिनट पहले जा चुकी है | एक विकल्प था की यहाँ से इगतपूरी निकल लें और वहां से कोई एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ लें | अब बारिश होने लगी थी और ना ही कसारा ना इगतपुरी के लिए कुछ मिल रहा था | कसारा यहाँ से २५ किलोमीटर है |
आखिर में एक ऑटो मिला जो कसारा छोड़ने के लिए मान गया और यकीन मानिये ऑटो की इस चिरस्मरणीय  यात्रा को मैं किसी उडान खटोले से कम नही कहूँगा | मुंबई नासिक महामार्ग पर एक ऑटो रिक्शा ट्रकों और गाड़ियों को चीरता हुआ बढ़ रहा था और वो भी बारिश में जब कुछ ना दिख रहा हो | ऑटो वाला बोला सर में आगे वाली इंडिका को देख के उसके पीछे पीछे चला रहा हूँ और उसकी गति ६०-७० किलोमीटर प्रति घंटा से कम ना रही होगी | खैर करीब ८ बजे हम कसारा पहुच गये |

कसारा पहुच कर देखा की ट्रेन ८:१० की है तो जल्दी से टिकेट लिए और प्लेटफोर्म में पहुचे | यहाँ आ कर मानो मुंबई की दुनिया का पता चला हो | मुंबई में दोपहर से बारिश हो रही थी और मध्य रेलवे की लोकल ट्रेन्स बंद थी | शाम ३ बजे के बाद से एक लोकल ६ बजे गयी थी और अब कोई भरोसा ना था| इंतज़ार के अलावा कोई और रास्ता नही था | करीब ९ बजे एक ट्रेन आई तो सुकून की सांस ली | अब कोई दिक्कत ना थी और यहाँ से दादर पहुच कर फिर वसई के लिए ट्रेन पकड़ ली | करीबन १ बजे हम लोग घर पहुच गये और इस थकाऊ और तीव्रगति यात्रा की समाप्ति हुई | चूँकि इस बार फिर कोहरे की वजह से हम हरिश्चन्द्रगढ़ की सुन्दरता और कोंकण काड़ा के दृश्यों का आनंद नही ले पाए तो अब सितम्बर में बारिश के बाद फिर से जाने का विचार बन चुका है |